Saturday, September 27, 2008

तीन ग़ज़लें: द्विजेन्द्र द्विज









ग़ज़ल १

अब के भी आकर वो कोई हादसा दे जाएगा
और उसके पास क्या है जो नया दे जाएगा

फिर से ख़जर थाम लेंगी हँसती—गाती बस्तियाँ
जब नए दंगों का फिर वो मुद्दआ दे जाएगा

‘एकलव्यों’ को रखेगा वो हमेशा ताक पर
‘पाँडवों’ या ‘कौरवों’ को दाख़िला दे जाएगा

क़त्ल कर के ख़ुद तो वो छुप जाएगा जाकर कहीं
और सारे बेगुनाहों का पता दे जाएगा

ज़िन्दगी क्या ज़िन्दगी के साये न होंगे नसीब
ऐसी मंज़िल का हमें वो रास्ता दे जाएगा




ग़ज़ल २

बंद कमरों के लिए ताज़ा हवा लिखते हैं हम
खि़ड़कियाँ हों हर तरफ़ ऐसी दुआ लिखते हैं हम

आदमी को आदमी से दूर जिसने कर दिया
ऐसी साज़िश के लिये हर बद्दुआ लिखते हैं हम

जो बिछाई जा रही हैं ज़िन्दगी की राह में
उन सुरंगों से निकलता रास्ता लिखते हैं हम

आपने बाँटे हैं जो भी रौशनी के नाम पर
उन अँधेरों को कुचलता रास्ता लिखते हैं हम

ला सके सब को बराबर मंज़िलों की राह पर
हर क़दम पर एक ऐसा क़ाफ़िला लिखते हैं हम

मंज़िलों के नाम पर है जिनको रहबर ने छला
उनके हक़ में इक मुसल्सल फ़ल्सफ़ा लिखते हैं हम




ग़ज़ल ३

कौंध रहे हैं कितने ही आघात हमारी यादों में
और नहीं अब कोई भी सौगात हमारी यादों में

वो शतरंज जमा बैठे हैं हर घर के दरवाज़े पर
शह उनकी थी , अपनी तो है मात हमारी यादों में

ताजमहल को लेकर वो मुमताज़ की बातें करते हैं
लहराते हैं कारीगरों के हाथ हमारी यादों में

घर के सुंदर—स्वप्न सँजो कर, हम भी कुछ पल सो जाते
ऐसी भी तो कोई नहीं है रात हमारी यादों में

धूप ख़यालों की खिलते ही वो भी आख़िर पिघलेंगे
बैठ गए हैं जमकर जो ‘हिम—पात’ हमारी यादों में

जलता रेगिस्तान सफ़र है, पग—पग पर है तन्हाई
सन्नाटों की महफ़िल—सी, हर बात हमारी यादों में

सह जाने का, चुप रहने का, मतलब यह बिल्कुल भी नहीं
पलता नही है कोई भी प्रतिघात हमारी यादों में

सच को सच कहना था जिनको आख़िर तक सच कहना था
कौंधे हैं ‘ द्विज ,’ वो बनकर ‘ सुकरात ’ हमारी यादों में

6 comments:

वीनस केसरी said...

बहुत बेहतरीन गजले है
पढ़वाने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद

वीनस केसरी

नीरज गोस्वामी said...

एक से बढ़ कर एक नायाब शेरों से सजी इन ग़ज़लों को कोई उस्ताद ही लिख सकता है....और मुझे ये कहने में कोई गुरेज नहीं की द्विज जी एक उस्ताद शायर हैं...अब उस्तादों की शायरी पर क्या टिप्पणी की जाए भला? हम पढ़ पा रहे हैं ये ही नियामत है...उनकी शानदार ग़ज़लें पढ़वाने का तहे दिल से शुक्रिया.
नीरज

गौतम राजऋषि said...

...अब द्विज जी की तारिफ में कुछ लिखना तो सूरज को दीया दिखाने जैसा है...
एकलव्यों को रखेगा वो हमेशा ताक पर
पाँडवों या कौरवों को दाखिला दे जायेगा..

क्या बात है?

Anonymous said...

द्विज जी एक उस्ताद शायर हैं...अब उस्तादों की शायरी पर क्या टिप्पणी की जाए भला?

द्विज जी एक उस्ताद शायर हैं...अब उस्तादों की शायरी पर क्या टिप्पणी की जाए भला?

sach agar yeh hai to Dwij ji
Aaina dikhlaana kya.

Aapki is shaayri ke kaayal ek nahin anek hai. Main bhi neeraj ki rai se sehmat hoon.

Daad ke saath
Devi Nangrani

Ahmad Ali Barqi Azmi said...

आदर्णीय द्विज जी
सामयिक चेतना और आधुनिक जीवन और सामाजिक परिवेश कि तल्ख़ हक़ीक़तोँ को उजागर करती हुई आपकी यह ग़ज़लेँ दावते फ़िक्रो अमल देती हैँ । इन ख़ूबसूरत ग़ज़लोँ के लिए मुबारकबाद । अल्लाह करे ज़ोरे क़लम ओर ज़ेयादह ।
अहमद अली बर्क़ी आज़मी

chandrabhan bhardwaj said...

BHai Dwij ji bahut achchhi gazalen likhate hain aap bahut bahut badhai
Padakar maza aa gaya.
chandrabhanbhardwaj.4@gmail.com