Friday, May 14, 2010

दूसरी क़िस्त- कौन चला बनवास रे जोगी












दूसरी क़िस्त में तीन शाइराओं की ग़ज़लें एक साथ मुलाहिज़ा कीजिए-

देवी नांगरानी






ओढे शब्द लिबास रे जोगी
आई ग़ज़ल है रास रे जोगी

धूप में पास रहे परछाईं
शाम को ले सन्यास रे जोगी

छल से जल में आया नज़र जो
चाँद लगा था पास रे जोगी

हिम्मत टूटी,दिल भी टूटा
टूटा जब विश्वास रे जोगी

सहरा के लब से जा पूछो
होती है क्या प्यास रे जोगी

जीस्त ने जब गेसू बिखराए
खोया होश‍ हवास रे जोगी

’देवी’ मत ज़ाया कर इनको
पूंजी इक इक स्वास रे जोगी

चंद्र रेखा ढडवाल(धर्मशाला हिमाचल प्रदेश)






जितने खिले मधुमास रे जोगी
उतने हुए बे-आस रे जोगी

ताल सरोवर पनघट तेरे
अपनी तो बस प्यास रे जोगी

मेघ बरसते थे,दिन बीते
अब तो बरसती प्यास रे जोगी

साथ प्रिया बन-बन डोले तो
काहे का बनवास रे जोगी

हमको अयोध्या में रहते भी
देख मिला बनवास रे जोगी

जिसने शिलाओं को तोड़ा हो
वो ही करे अब न्यास रे जोगी

खेत भी होंगे राजसिंहासन
आम जो होंगे ख़ास रे जोगी

आज इस गाँवों कल उस नगरी
क्यों बँधवाई आस रे जोगी

खेल रहा था खेल फ़क़त तू
हमने किया विश्वास रे जोगी

सारा जबीन

जब से गया बनवास रे जोगी
टूटी प्रीत की आस रे जोगी

सब सखियां ये पूछ रही हैं
कौन चला बनवास रे जोगी

धन दौलत नहीं मांगूं तुझसे
मांगूं तेरा पास रे जोगी

किस को समझूँ अब मैं दोषी
कुछ भी न आया रास रे जोगी

लौटेगा तू 'सारा' की है
आँखों में विश्वास रे जोगी

10 comments:

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

बहुत सुन्दर... ये तरही तो परवान चढ़ रहा है.
एक बार फिर से पढता हूँ.

daanish said...

तर`ही मिसरा
लग रहा था क मुश्किल रहेगा
लेकिन इन तीन ग़ज़लों को पढ़ कर लगता है
क लिखने वाले ख्वातीन-ओ-हज़रात
बहुत मेहनत करने वाले शख्स हैं
उन सब की शाइरी खुद कह रही है ये बात
देवी नागरानी जी तो एक स्थापित और सशक्त लेखिका हैं
उन्हें बारहा रिसालों में पढ़ना हो जाता है
उनका ये शेर ..
सेहरा के लब स ये पूछो
होती क्या है प्यास रे जोगी ....
बहुत ही उम्दा शेर है
रेखा जी के शेर ...
ताल सरोवर पनघट तेरे
अपनी तो बस प्यास रे जोगी
लाजवाब ....
और सारा साहिबा का ये शेर...
लौटेगा तू , 'सारा' की है
आँखों में विश्वास रे जोगी
बहुत अछा लगा
शाइरात को मुबारकबाद

vandana gupta said...

bahut hi shaandar gazal hain.......padhwane ka shukriyaa.

Anonymous said...

ताल सरोवर पनघट तेरे
अपनी तो बस प्यास रे जोगी
satpal ji..awesome she'r

bahut khoob!!

Anees

सतपाल ख़याल said...

सही कहा आपने शे’र बाक़ी खूबसूरत है।

ताल सरोवर पनघट तेरे
अपनी तो बस प्यास रे जोगी
क्या बात है!! खूब

jogeshwar garg said...

वाह ! वाह ! वाह !
तीनों देवियों की तीनों ग़ज़लें एक से बढ़ कर एक हैं.
सहरा के लब से जा पूछो
होती है क्या प्यास रे जोगी
(देवी नांगरानी जी)
जितने खिले मधुमास रे जोगी
उतने हुए बेआस रे जोगी
ताल सरोवर पनघट तेरे
अपनी तो बस प्यास रे जोगी
(चन्द्र रेखा जी)
धन दौलत नहीं मांगूं तुझसे
मांगूं तेरा पास रे जोगी
(सारा जी)
बहुत सुन्दर !

तिलक राज कपूर said...

सहरा के लब से जा पूछो
होती है क्या प्यास रे जोगी
और
ताल सरोवर पनघट तेरे
अपनी तो बस प्यास रे जोगी
और फिर
धन दौलत नहीं मांगूं तुझसे
मांगूं तेरा पास रे जोगी
में छाई प्‍यास।
प्‍यास के तीन रूप और तीन शानदार प्रस्‍तुतियॉं।

नीरज गोस्वामी said...

दीदी देवी नागरानी जी के ये शेर अपने साथ लिए जा रहा हूँ....किस सादगी से उन्होंने कमाल की बात कही है...सुभान अल्लाह...वाह...

धूप में पास रहे परछाईं
शाम को ले सन्यास रे जोगी

हिम्मत टूटी,दिल भी टूटा
टूटा जब विश्वास रे जोगी



चन्द्र रेखा जी ने अपने कलाम से चकित कर दिया है...बेहद खूबसूरत अशआर कहें हैं उन्होंने...सारे दिल को छू गए हैं खास तौर पर:-

ताल सरोवर पनघट तेरे
अपनी तो बस प्यास रे जोगी

जिसने शिलाओं को तोड़ा हो
वो ही करे अब न्यास रे जोगी

शिला न्यास का ये प्रयोग अद्भुत है...



सारा जी की ग़ज़ल असरदार है उनका ये शेर बहुत अच्छा है:-

किस को समझूँ अब मैं दोषी
कुछ भी न आया रास रे जोगी



आपका बहुत बहुत शुक्रिया इन सबको हम तक पहुँचाने के लिए.

नीरज

kavi kulwant said...

ek se vadh kar ek khoovsurat vhaav...
satpal ji aap vadhaayi ke patra hain

गौतम राजऋषि said...

देवी जी के इस शेर ने मन मोह लिया

"जीस्त ने जब गेसू बिखराए
खोया होश‍ हवास रे जोगी"