Monday, March 26, 2012

आफ़रीं उन पे जो सच बोल रहे हैं अब तक-द्विजेन्द्र द्विज




















टूट जाएँगे मगर झुक नहीं सकते हम भी
अपने ईमाँ की हिफ़ाज़त में तने हैं अब तक


 












ग़ज़ल : द्विजेन्द्र द्विज
इने कितने यहाँ टूट चुके हैं अब तक
आफ़रीं उन पे जो सच बोल रहे हैं अब तक

टूट जाएँगे मगर झुक नहीं सकते हम भी
अपने ईमाँ की हिफ़ाज़त में तने हैं अब तक
रहनुमा उनका वहाँ है ही नहीं मुद्दत से
क़ाफ़िले वाले किसे ढूँढ रहे हैं अब तक

अपने इस दिल को तसल्ली नहीं होती वरना
हम हक़ीक़त तो तेरी जान चुके हैं अब तक

फ़त्ह कर सकता नहीं जिनको जुनूँ महज़ब का
कुछ वो तहज़ीब के महफ़ूज़ क़िले हैं अब तक

उनकी आँखों को कहाँ ख़्वाब मयस्सर होते
नींद भर भी जो कभी सो न सके हैं अब तक

देख लेना कभी मन्ज़र वो घने जंगल का
जब सुलग उठ्ठेंगे जो ठूँठ दबे हैं अब तक

रोज़ नफ़रत की हवाओं में सुलग उठती है
एक चिंगारी से घर कितने जले हैं अब तक


इन उजालों का नया नाम बताओ क्या हो
जिन उजालों में अँधेरे ही पले हैं अब तक

पुरसुकून आपका चेहरा ये चमकती आँखें
आप भी शह्र में लगता है नये हैं अब तक

ख़ुश्क़ आँखों को रवानी ही नहीं मिल पाई
यूँ तो हमने भी कई शे’र कहे हैं अब तक

दूर पानी है अभी प्यास बुझाना मुश्किल
और ‘द्विज’! आप तो दो कोस चले हैं अब तक

6 comments:

तिलक राज कपूर said...

लाजवाब ग़ज़ल। हर शेर नगीने सा तराशा हुआ। इस खूबसूरत पेशकश पर बधाई।
दूर तक हम भी टहल आये हैं महफि़ल-महफिल
हमको अश'आर कहॉं ऐसे मिले हैं अब तक।

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

"अपने इस दिल को तसल्ली नहीं होती वरना,
हम हक़ीक़त तो तेरी जान चुके हैं अब तक|
रोज़ नफ़रत की हवाओं में सुलग उठती है,
एक चिंगारी से घर कितने जले हैं अब तक||"
waah.....bahut umda sher.....

Pawan Kumar said...

आदरणीय द्विजेन्द्र जी
क्या बढ़िया ग़ज़ल लिखी है..... सारे शेर नगीने हैं..... !
पर यह शेर लाजवाब है_____
पुरसुकून आपका चेहरा ये चमकती आँखें
आप भी शह्र में लगता है नये हैं अब तक

द्विजेन्द्र ‘द्विज’ said...

आभारी हूँ आदरणीय भाई तिलक राज कपूर ,भाई प्रसन्न वदन चतुर्वेदी, और singhSDM साहब का जिन्होंने
समय निकाल कर न केवल ग़ज़ल पढ़ी बल्कि अपनी बहुमूल्य टिप्पणी भी दी.

नीलम शर्मा 'अंशु' said...

एक से एर बढ़कर एक है हर शे'र। लाजवाब पेशकश।
"आइने कितने यहाँ टूट चुके हैं अब तक
आफ़रीं उन पे जो सच बोल रहे हैं अब तक

पुरसुकून आपका चेहरा ये चमकती आँखें
आप भी शह्र में लगता है नये हैं अब तक

ख़ुश्क़ आँखों को रवानी ही नहीं मिल पाई
यूँ तो हमने भी कई शे’र कहे हैं अब तक

दूर पानी है अभी प्यास बुझाना मुश्किल
और ‘द्विज’! आप तो दो कोस चले हैं अब तक"

नीलम शर्मा 'अंशु' said...

एक से एर बढ़कर एक है हर शे'र। लाजवाब पेशकश।
"आइने कितने यहाँ टूट चुके हैं अब तक
आफ़रीं उन पे जो सच बोल रहे हैं अब तक

पुरसुकून आपका चेहरा ये चमकती आँखें
आप भी शह्र में लगता है नये हैं अब तक

ख़ुश्क़ आँखों को रवानी ही नहीं मिल पाई
यूँ तो हमने भी कई शे’र कहे हैं अब तक

दूर पानी है अभी प्यास बुझाना मुश्किल
और ‘द्विज’! आप तो दो कोस चले हैं अब तक"