Wednesday, July 25, 2012

ग़ज़ल- दिनेश ठाकुर




दिनेश जी के ग़ज़ल संग्रह 'परछाइयों के शहर में' से-  एक ग़ज़ल-

दिल ग़म से आज़ाद नहीं है
ऐसा क्यों है, याद नहीं है

ख़्वाबों के ख़ंजर पलकों पर
होठों पर फ़रियाद नहीं है

जंगल तो सब हरे-भरे हैं
गुलशन क्यों आबाद नहीं है

दिल धड़का न आँसू आए
यह तो तेरी याद नहीं है

आबादी है शहरे-वफ़ा की
कौन यहाँ बर्बाद नहीं है

सच-सच कहना हँसने वाले
क्या तू भी नाशाद नहीं है..?

कितने चेहरे थे चेहरों पर
कोई चेहरा याद नहीं है

जो कुछ है इस जीवन में है
कुछ भी इस के बाद नहीं है